चौबीस घंटे में दो बार हिली दिल्ली मगर आगे किसी बड़े भूकंप के आने की संभावना नहीं है

नई दिल्लीः लॉकडाउन के बीच अगर भूकंप आ जाए तो क्या करेंगे? यह सवाल बीते कई दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है। वजह, 12-13 मार्च को 24 घंटों के भीतर दिल्ली का दो बार हिलना है। दोनों बार भूकंप का केंद्र पूर्वी दिल्ली था। लोग दहशत में आ गए और घरों से बाहर निकल आए। हालांकि भू विज्ञानियों का मानना है कि डर निराधार है और यहां किसी बड़े भूकंप के आने की संभावना नहीं है। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के निदेशक (ऑपरेशन) जेएल गौतम ने बताया कि ऐसा नहीं लगता कि दोनों भूकंप फॉल्ट-लाइन प्रेशर की वजह से आए। उन्होंने कहा कि इन स्थानीय और कम तीव्रता वाले भूकंपों के लिए, फॉल्ट लाइन की जरूरत नहीं है। धरातल के नीचे छोटे-मोटे एडजस्टमेंट होते रहते हैं और इससे कभी-कभी झटके महसूस होते हैं। बड़े भूकंप फॉल्ट लाइन के किनारे आते हैं। गौतम ने कहा कि दिल्ली नहीं, बल्कि हिमालयन बेल्ट को भूकंप से ज्यादा खतरा है। उन्होंने कहा कि हंिदूू कुश से अरुणाचल प्रदेश तक जाने वाले रेंज में ही बड़े भूकंप आते हैं। दिल्ली से तो यह पहाड़ 200-250 किलोमीटर दूर हैं। लिहाजा, दिल्ली का अधिकेंद्र बनना मुश्किल है।दिल्ली में कहां ज्यादा खतरा: पृथ्वी विज्ञान मंत्रलय की एक रिपोर्ट बताती है कि यमुना के मैदानों को भूकंप से ज्यादा खतरा है। पूर्वी दिल्ली, लुटियंस दिल्ली, सरिता विहार, पश्चिम विहार, वजीराबाद, करोलबाग और जनकपुरी जैसे इलाकों में बहुत आबादी रहती है, इसलिए वहां खतरा ज्यादा है। वहीं, छतरपुर, नारायणा, वसंत कुंज जैसे इलाके बड़ा भूकंप ङोल सकते हैं। इसके अलावा दिल्ली में जो नई इमारतें बनी हैं, वे 6 से 6.6 तीव्रता के भूकंप को ङोल सकती हैं। पुरानी इमारतें 5 से 5.5 तीव्रता का भूकंप सह सकती हैं। दिल्ली ने 2008 और 2015 में नेपाल भूकंप के बाद पुरानी इमारतों को ठीक करने की कवायद शुरू की थी। दिल्ली सचिवालय, दिल्ली पुलिस मुख्यालय, विकास भवन, गुरु तेग बहादुर अस्पताल की इमारत को भी मजबूत किया गया था।


 


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