कॉर्पोरेट / गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई अब पैरेंट कंपनी अल्फाबेट के भी सीईओ बने; फाउंडर लैरी पेज का इस्तीफा
कैलिफॉर्निया. गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई (47) अब गूगल की पैरेंट कंपनी अल्फाबेट के भी सीईओ बन गए हैं। गूगल के को-फाउंडर लैरी पेज (46) ने अल्फाबेट के सीईओ का पद छोड़ दिया। पिचाई को यह जिम्मेदारी दी गई है। दूसरे को-फाउंडर सर्गेई ब्रिन (46) ने भी अल्फाबेट के प्रेसिडेंट पद से इस्तीफा दे दिया, कंपनी में अब प्रेसिडेंट का पद खत्म कर दिया जाएगा। पेज और ब्रिन ने एक ब्लॉग पोस्ट के जरिए मंगलवार को इन फैसलों का ऐलान किया। पिचाई ने दोनों का आभार जताया। भारतीय मूल के पिचाई 2004 से गूगल में हैं।
दोनों को-फाउंडर ने कहा- अल्फाबेट अब अच्छी तरह स्थापित हो चुकी है, एक स्वतंत्र कंपनी के तौर पर गूगल भी प्रभावी ढंग से चल रही है। मैनेजमेंट स्ट्रक्चर में बदलाव का यह सही वक्त है। जब भी हमें लगा कि कंपनी के संचालन का कोई और बेहतर तरीका है तो हमने कभी नहीं सोचा कि प्रबंधन की भूमिकाओं में रहें। अल्फाबेट और गूगल को अलग-अलग सीईओ और प्रेसिडेंट की जरूरत नहीं है।
पेज और ब्रिन अल्फाबेट के बोर्ड में बने रहेंगे। उनके पास कंपनी के 51.3% कंट्रोलिंग वोटिंग शेयर हैं। पिचाई के पास 0.1% होल्डिंग है। यानी कंपनी के फाउंडर कभी भी सीईओ को चुनौती दे सकते हैं। गूगल ने कहा है कि वोटिंग स्ट्रक्चर में कोई बदलाव नहीं होगा। फोर्ब्स के मुताबिक पेज की नेटवर्थ 58.9 अरब डॉलर (4.22 लाख करोड़ रुपए) और ब्रिन की 56.8 अरब डॉलर (4.07 लाख करोड़ रुपए) है। पिचाई की नेटवर्थ करीब 60 करोड़ डॉलर (4,300 करोड़ रुपए) होने का अनुमान है। अल्फाबेट मार्केट कैप में दुनिया की तीसरी बड़ी कंपनी है, उसका वैल्यूएशन 893 अरब डॉलर (64 लाख करोड़ रुपए) है।
पेज और ब्रिन ने 1998 में गूगल की शुरुआत की थी। रिस्ट्रक्चरिंग के तहत 2015 में गूगल ने पैरेंट कंपनी अल्फाबेट बनाई थी, ताकि सर्च और डिजिटल के प्रमुख कारोबार के अलावा दूसरे प्रोजेक्ट संभाल सके। उस वक्त पेज गूगल के सीईओ पद से इस्तीफा देकर अल्फाबेट के सीईओ बने थे। पिचाई को गूगल के सीईओ की जिम्मेदारी दी गई थी। उससे पहले पिचाई गूगल की एंड्रॉयड और क्रोम यूनिट का नेतृत्व कर रहे थे। पिचाई 15 साल से गूगल में हैं। उन्होंने 2004 में कंपनी ज्वॉइन की थी।
कोर बिजनेस की ग्रोथ, रेग्युलेटरी विवाद पिचाई के लिए चुनौतियां
अल्फाबेट को इस वक्त अपनी वेयमो और वेरिली जैसी सब्सिडियरी पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत पड़ सकती है, क्योंकि गूगल के डिजिटल एडवरटाइजिंग जैसे कोर बिजनेस की ग्रोथ धीमी पड़ रही है। दूसरी ओर गूगल पर प्रतिद्वंदी कंपनियों को ऑनलाइन सर्च में ब्लॉक करने जैसे मामलों में जुर्माने लग चुके हैं। प्रतिस्पर्धा नियमों के उल्लंघन के मामलों में कई देशों के रेग्युलेटर कंपनी को दोषी ठहरा चुके हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प गूगल पर राजनीतिक भेदभाव का आरोप लगाते रहे हैं। कंपनी को बीते एक साल के दौरान कई बार कर्मचारियों के गुस्से का भी सामना करना पड़ा। यौन शोषण के आरोपी एंडी रुबिन को 9 करोड़ डॉलर का एग्जिट पैकेज देने के खिलाफ गूगल के हजारों कर्मचारियों ने पिछले साल प्रदर्शन किया था।
कर्मचारियों के विरोध की वजह से ही गूगल को चीन में फिर से एंट्री की कोशिश का ड्रैगनफ्लाई प्रोजेक्ट रद्द करना पड़ा। इतना ही नहीं कंपनी ने अमेरिका के रक्षा विभाग का कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू करने से भी इनकार कर दिया, क्योंकि कर्मचारियों ने पिचाई से अपील की थी कि कंपनी को युद्ध क्षेत्र के कारोबार से दूर रखा जाए।
पिचाई ने 1993 में आईआईटी खड़गपुर से बीटेक किया। उसी साल स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिल गई। पिचाई ने वहां से इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री ली और यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया के व्हार्टन स्कूल से एमबीए किया। 2004 में गूगल जॉइन करने से पहले सॉफ्टवेयर कंपनी एप्लाइड मैटेरियल्स और मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म मैकेंजी में काम किया था।